कविता संग्रह >> अपने आकाश में अपने आकाश मेंसविता भार्गव
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'अपने आकाश में' की कविताएँ जीवन-विवेक और काव्य-विवेक में बड़े परिवर्तन का संकेत देती हैं !
सविता भार्गव के पहले काव्य-संकलन का नाम था-'किसका है आसमान' ! पाँच-छह साल बाद 'किसका' जैसे प्रश्न से मुक्त होकर कवयित्री ने स्वयं के आकाश की रचना कर ली है ! 'अपने आकाश में' की कविताएँ जीवन-विवेक और काव्य-विवेक में बड़े परिवर्तन का संकेत देती हैं ! पहले संकलन में यथार्थ और उसकी जो रचना-कला है, उससे सम्बन्ध बनाए रखते हुए नई 'सामर्थ्य'-जिसमे यथार्थबोध और आत्मबोध का गहरा मुठभेड़ दिखाई पड़ता है - का परिचय दिया गया है ! इसे यथार्थ पर रोमांटिक वेग के दबाब के रूप में भी देख सकते है ! सविता कविता में बार-बार अपनी छवि गढ़ने की कोशिश करती हैं ! तरह-तरह की छवियाँ निश्चित बेजान होतीं अगर स्वयं तक सीमित होतीं ! उनकी शक्ति ये है कि वे एक ओर स्त्री के निगूढ़ संसार को प्रतिबिंबित करती हैं, दूसरी ओर उस समाज को जिसमे स्त्री सांस लेती है ! स्त्री-छवि को जिस तरह से वे गढ़ती है , उसमे पुरुष की अलग से छवि रचने की आवश्यकता बहुत कम रह जाती है ! नारीवादी कवयित्रियों से सविता इस मायने में भिन्न हैं कि वे पुरुष समाज के प्रति आलोचना का भाव रखती अवश्य हैं, किन्तु पुरुष के प्रति समूचे मन से निष्ठां का परिचय देती हैं ! वे इस विश्वास का परिचय देती है कि स्त्री स्वतंत्र तरीका है लेकिन उसकी आत्मा इमानदार और सम्पूर्ण पुरुष के प्रति समर्पित है ! सविता पुरुष-सत्ता का विरोध भी मजे-मजे में करती हैं ! एक कविता है-'पुरुष होना चाहती हूँ' ! उसमे अपनी देह से पुरुष के 'गुनाह' का आनंद पुरुष बनकर लिया गया है ! सविता में अंतर्बाधा नहीं है ! साहसी कवयित्री हैं-स्त्री के आत्मविश्वास कि कवयित्री ! अच्छी बात यह है कि स्त्री कि 'सच्ची प्रतिमा' गढ़ने की ललक उनकी मुख्य प्रवृति है ! सविता में पर्याप्त आत्ममुग्धता है ! आत्मरति है ! लेकिन वह खटकती नहीं है ! उसमे स्त्री के स्वत्व और सत्त्व, दोनों कि प्रतिष्ठा का प्रयास दिखाई पड़ता है ! दूसरी बात, सविता में 'स्त्री' और 'कवयित्री' का प्रकृति से तादात्म्य विशेष महत्त्व रखता है ! प्रकृति उनके लिए जीने और सीखने की सही जगह है; उसी के जरिए सामाजिक अनुभव की कटुता की क्षतिपूर्ति करती हैं ! 'अपने आकाश में' संकलन में काव्य-उर्जा का नया क्षेत्र तैयार होता दिखाई पड़ता है !
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